Wednesday, 7 October 2015

वर्णन…

रिमझिम होती बारिश अब तो,
भेद दिलों के खोलेगी।
देखना तुझसे मिलकर तुझको,
हाल हमारा बोलेगी॥                 

इक बार ज़रा वर्षा-मोती में,
सराबोर कर दे खुद को।
अरे!, सच कहता हूँ ना चाहेगी,
तब भी मेरी हो लेगी॥



पर ध्यान भी रखना इसका कि,
कोई देख़ ना ले तुझको भीगा।
मानुष क्या है देवों की भी,
नीयत तुझ पर डोलेगी॥

हर बूँद तेरे चेहरे से गिर कर,
ख़ुद सुन्दर हो जाती है।
तुझे देख़ कर परियों की,
रानी भी रूप टटोलेगी॥



सुन ‘भोर’ कहे क्या, सुन्दरता;
तुझ-सी दुनिया में नहीं कहीं।
रूप की रानी तुझे देख़ कर,
मुँह टेढ़ा कर रो लेगी॥



©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’


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