वह तो वापस जा रहा है,
घर नगर को छोड़ कर।
हर सगे, हर मित्रगण औ,
माँ से तो वह कह चुका है,
‘‘लौट कर फ़िर आऊँगा।
तिरंगा बचाऊँगा या,
तिरंगा हो जाऊँगा॥
पर तू ना कर फ़िक्र मेरी,
हँसते-हँसते कर विदा।
अच्छा तो अब चल पड़ू,
ऐ माँ मेरी बस अलविदा॥’’
पिताजी से कह रहा कि,
‘‘पापा जी अब चलता हूँ।
अगली बार अवकाश में,
पुनः फ़िर से मिलता हूँ॥
आप ने जो दी थीं,
सभी सीख मुझे याद हैं।
यह भी मुझे ज्ञात है कि,
भाई को भी है बताता,
मन लगाकर के पढ़ो।
न कभी डरना अनुज,
आगे, बस आगे बढ़ो॥
बीवी से भी कह रहा है,
जब मैं वापस आऊँगा।
बच्चों सहित तुमको यकीनन,
सैर पर ले जाऊँगा॥
ह्रदयांश से कह रहा,
तू शेर का बच्चा है न?
क्यों रुलाता है मुझे,
दृढ़-विश्वासी चेहरा उसका,
धुँधला-सा पड़ जाता है।
कुछ विचार करके पुनः वह,
उठ खड़ा हो जाता है॥
मानो जैसे कह रहा हो,
ये तो बस दो-चार हैं।
रक्षा सबकी करनी है,
जो कई हज़ार हैं॥
सोचता हूँ मैं कि,
सभी सैनिक बड़े धन्य हैं।
हम में से ही हैं वो कुछ,
में भी पहरा देते हैं।
अपना जीवन देकर हमको,
देश सुनहरा देते हैं॥
रात-रात भर जाग-जाग कर,
देश की रक्षा करते हैं।
सीमा पर हर साल ना जाने,
हर निशा, हर ‘भोर’ जिनकी,
देश पर कुर्बान है।
ऐसे हर इक वीर को,
ह्रदय से सलाम है॥
ऐसे हर इक वीर को,
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