Wednesday 28 August 2019

पाक इश्क़..!


This is a part of a poem posted earlier titled "इश्क़ की राजनीति" penned by a friend and a reader "निशान्त राजोरा". However this poem here is written by me in order to honor his writing and to make a masterpiece (sort of). Read both poems simultaneously to get the true meaning. If you haven't read his poem then go read it first : "इश्क़ की राजनीति "


तेरे साथ खड़ी मुस्कुराती रही,
तुझको अपना दर्द भी बताती रही।
प्यार के सहारे ही चलती रही उम्र भर,
और प्यार ही तुझसे छुपाती रही॥

दूर चाहे कितना हो दिल के पर पास है,
तू नहीं है साथ पर तेरा अहसास है।
मन्नतें तुम कह लो या दुआ कहो मेरी,
फिर कहीं मिल जाएँगे ये मेरा विश्वास है॥

चाहा था उस से मैं मिलूँ तो कभी,
मन की सब बात उस से कहूँ तो कभी।
स्वप्नों में तो अक़्सर ही आता है मेरे,
‘भोर’ मुझको सामने भी मिले तो कभी॥


तेरे माथे पर बिखरते तेरे बालों से इक वादा,
हँसने पर उभरते तेरे गालों से इक वादा।
मैं भी छुप के मुस्कुरा देती हूँ हँसी देख के तुम्हारी,
साथ बैठ हँस पाने का इक पाक इरादा॥

मन में उम्मीदों के दिये भी हैं,
सहारे मैंने अँधेरों में लिए भी हैं।
अब रातों से भी अलग-सा नाता बन चुका है,
मेरे चाँद ने उजाले किए भी हैं॥

पाक मेरा इश्क़ ये आज भी है,
हाँ, कितना मैंने चाहा उसे ये राज़ भी है।
उसके लिए गुज़ारा समय व्यर्थ तो न था,
उसके नाम सब वक़्त मेरा आज भी है॥



©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’

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