मैं शुष्क चिरागों की भाँति,
वह मधुवन वृक्ष की छाया-सी।
मैं ठोस-कठोर हूँ हाड़ सदृश,
वह निर्मल-कोमल काया-सी॥
वह पौ फटते यादों में आती,
मैं न आता शाम तलक।
वह गद्य रूप छा जाती मन में,
न लेती पर नाम तलक॥
वह, मेरी ऊर्जा का स्रोत,
मैं दूर-दूर तक कहीं नहीं।
वह कभी गलत न होती, पर मैं
एक बार तक सही नहीं॥
मैं, उसकी चिंता का मूल,
वह कारण हर मुस्कान का।
मैं दर्द बड़ा ही देता, पर वह
मरहम करे थकान का॥
वह सोच में है, हर स्मृति में है,
मैं कारण छंद-विच्छंदन का।
वह मेरी रग-रग में बसती,
मैं दर्द उसके हर स्पंदन का॥
वह मेरी कल्पित रचना है, औ
मैं उसको गढ़ने वाला।
वह मुझको ही दर्शाती है, औ
मैं ही इक पढ़ने वाला॥
मैं ‘भोर’ समय तक चलता हूँ,
वह काल-अनंती माया-सी।
मैं शुष्क चिरागों की भाँति,
वह मेरी ही इक छाया-सी॥
©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’
Bahot pyari rachna hai
ReplyDeleteDo vipareet Bhavon ka mukammal sanyog
बहुत-बहुत धन्यवाद! कविता का मर्म अगर किसी तक पहुँच जाए तो कवि के लिए उस से अधिक खुशी का अवसर क्या होगा? आभार आपका। यूँ ही पढ़ते रहें, पढ़ाते रहें। धन्यवाद..!!
DeleteBahut dino baad kuch khas sunne ko mila. Badiya bhai aage badte raho aur humare bhavnaon ko aise roop dete jao
Deleteबहुत-बहुत आभार! अगर सब लोगों का साथ और प्यार मिलता रहा तो बेशक़ आगे ही बढ़ना है। पुनः धन्यवाद!
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हॄदय से आभार!
Deleteपुनः धन्यवाद..!
I love it
ReplyDeleteThank You!
Deleteअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
let's be friend