Saturday, 30 May 2015

सीखना है…!!!

सीखना है सिर छुपाना, सिर बचाना सीखना है,
आस पास रह के सबके पास आना सीखना है।
बचपने में थी पढ़ी, जो एकजुटता की कहानी,
फ़िर से उसे दुनिया में सबको बताना सीखना है॥


सीखना है कैसे सूरज की तपिश को कम करें,
सीखना है कैसे दारिद्रता ख़त्म करें।
सबको ही मौके दिलाना, सबको एक सा बनाना,
सीखना है कैसे, दुनिया की विषमता सम करें॥


सीखना है ये कि जलन की भावना ना रहे,
सीखना है ये व्यसन की व्यर्थ कामना ना रहे।
ध्यान रखना सीखना है, मान करना सीखना है,
सीखना है जग में स्त्री की उलाहना ना रहे॥


सीखना है ये कि पंछी पर खुले ही हैं भले,
सीखना है ये कि मन में हर घड़ी आशा रहे।
सीखना है ये की स्वयं हम ही अपने साथ हैं,
कर्म सारे हैं सरल बस भरोसे की बात है॥


याद भी रखना है इक दिन ‘भोर’ अपना रूख़ करेगी,
वह घड़ी जब ज़िंदगी भी हँस पड़ेगी सुख कहेगी।
तब ना अँधियारा रहेगा, ना अपूर्ति रह बचेगी,
लेकिन नये ‘भोर’ की उम्मीद तब भी रहेगी…॥






©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’

(wallpapers - Wall 1)

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