Sunday, 1 May 2016

हँसाने वाले…

हर दिन हर किसी को,
मुस्कान बाँटते हैं।
हँसते हैं ख़ुद अपना,
दर्द ढ़ाँपते हैं॥

तन्हाईयों में आकर,
देखना किसी कोने में।
कैसे रोते हैं,
सबको हँसाने वाले॥

हर पल हर किसी को,
सताया करते हैं।
खुशियाँ बाँटते हैं, ख़ुद
मुस्कुराया करते हैं॥

धीमे से पूछना कभी,
जब अकेले हों।
ख़ुद परेशाँ हैं,
सबको सताने वाले॥
ख़ुद कहकहा बन कर,
हँसाते हैं सबको।
बिगड़े कोई बात,
समझाते हैं सबको॥

कुछ पल हमदर्दी के,
उनको भी चाहिए।
ख़ुद से रूठे हैं,
सबको मनाने वाले॥

वो चाहते हैं कोई उनकी,
मुस्कुराहट जान ले।
सराबोर नीर में,
आँसू पहचान ले॥

‘भोर’ की शुरुआत से,
देर साँझ, निशा तक।
छिप के रोते हैं,
ख़ूब मुस्कुराने वाले॥




©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’


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