Sunday, 29 September 2019

तन्हा शाम



ये शाम दो तरफ़ा काम करती है। एक तो मन को आराम देती है कि दिन तो ख़त्म हुआ पर वहीं दिल बैठ जाता है, ऐसी ही किसी शाम को लेकर। एक साथ कई विचार अपनी-अपनी ज़लीलें सुनाना शुरु कर देते हैं और दिल किसी नौसिखिए जज के जैसे चुप कर के बैठ जाता है। ये दिल भी अजीब है, हार भी तो नहीं मानता। तुम्हें पता है? आजकल तो बड़ा ही मुश्किल लगता है खुद को समझना भी।

ये शाम बड़ी तन्हा है। कैसे? वो ऐसे कि हर शाम की तरह इस शाम भी कुछ चल रहा है मन में, कई चेहरे आ-आ कर जा रहे हैं। कितने ही नाम धुँधले हो रहे हैं हर दो-दो पलों में। इस शाम में नशा बहुत है। जैसे नशा करने के बाद मिला-जुला एहसास होता है; खुशी और ग़म का। ठीक वैसा ही एहसास दे जाती है ये शाम। न जाने क्यों ये डूबता सूरज दिल को लाखों भावों के वेश में ले जाता है। भावनाओं का बहाव सब कुछ ले जाता है; वो दर्द, ग़म और खुशी में अन्तर नहीं जानता। चाहे मन में कुछ भी चल रहा हो, ये भवनाओं का बहाव हर बार एक उदासी भरा माहौल छोड़ जाता है। आज भी कई शामों की तरह कई लोग अपनी फ़रियादें लेकर आते रहे और सबसे ज़्यादा फ़रियादें लेकर वो खड़ी थी। और आश्चर्य कि एक भी फ़रियाद उसकी नहीं थी। सारी ही मेरी खुद की थीं उस से। पर अब इसका कोई मर्म किसी और की समझ नहीं आ सकता। ये तो बस मैं, मेरा दिल, तुम और ये शाम ही समझ सकती है।

सूरज के डूब जाने के बाद भी आसमान का रंग कुछ-कुछ मन बहलाने की कोशिश करता है पर उसका खुद का दर्द रह-रहकर बाहर छलक पड़ता है। दिन भर में कैसे सारे रंग एक होकर पूरी कोशिश करते हैं कि इनका दर्द किसी को मालूम न हो पाए। पर शाम आते-आते सब अलग-अलग हो जाते हैं और इनका दर्द पूरे जग में फ़ैल कर सबसे अपना हाल बयाँ करता है पर किसी को क्या फ़िक्र किसी और की। यहाँ तो अपनी नाव के सब स्वयं ही खिवैया हैं।

दुनिया में सब कुछ बदलता है; इंसान, वक़्त, चरित्र, नज़ारे। कुछ नहीं बदलता तो वो है; ये ‘”तन्हा शाम!



मेरी डायरी “Holiday” के पन्नों से अब आपके लिए,
-भोर



Wallpaper- Wall 1

2 comments:

Write your name at the end of the comment, so that I can identify who it is. As of now it's really hard for me to identify some people.
Sorry for the inconvenience..!!
Thanks..!!