Thursday 24 January 2019

काफ़िर या दीवाना


मन में जो आए वो कह लो,
काफ़िर या दीवाना।
जैसा चाहो वैसा मानो,
अपना या बेग़ाना॥

धुन उसकी ही मन में मेरे,
सभी पहर रहती है।
उसका ही होकर रहना है,
कुछ भी कहे ज़माना॥


अक़्सर यूँ ही बैठा-बैठा,
उसे याद कर लेता हूँ।
नशा इश्क़ का मुझको है,
तुम दूर रखो पैमाना॥

मैंने किया है; दुनिया भर में
प्यार सभी करते हैं।
किसको प्यार नहीं होता,
तुम मुझसे तो मिलवाना॥


नाम उसी का ज़ुबाँ में मेरी,
कई बार आता है।
ऐसा करना नाम मेरा भी,
उसको देते आना॥

‘भोर’ से लेकर देर निशा तक,
जिक्र उसी का करता हूँ।
दुनिया भर से काफ़िर हूँ,
बस उसी का हूँ दीवाना॥



©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’



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1 comment:

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Sorry for the inconvenience..!!
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