सीधे लक्ष्य पर लग जाएँ,
हमारे ये बाण।
करना मार्गदर्शन हमारा,जब तक है,
शरीर में प्राण॥
शिक्षा देकर जीवन में हमारे,
आपने अंधकार मिटाया।
हमारे भीतर आपने,
ज्ञान का दीप जलाया॥
हमारा जीवन आपने,
पल में स्वर्ग बनाया।
असफ़लता से कभी डरो नहीं,
हमें आपने यही सिखाया॥
अँधेरे में थे हम, आपने दिखाया
रोशनी से भरा तारा।
डर का वृक्ष जड़ ले चुका था,
आपने उसे जड़ से उखाड़ा॥
जो विद्या का धन आपने हमें दिया है,
उसका कर्ज़ कैसे उतारूँ।
शीश तुम्हें झुकाता हूँ,
स्वीकार करो नमन हमारा॥
अर्जुन के लिए जो द्रोणाचार्य है,
जो मीरा का लगता रविदास है।
आपका स्थान मेरे लिये इतना खास है,
जितना शरीर में आत्मा का वास है॥
बिन आपके जीवन-सुख आया न रास है,
घनघोर अँधेरे में भी जैसे उजाले की तलाश है।
हमारे जीवन में आपका स्थान इतना खास है,
जैसे कस्तूरी के लिए हिरण की तलाश है॥
©शुभांकर ‘शुभ’
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-प्रभात सिंह राणा 'भोर'
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Sorry for the inconvenience..!!
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