Thursday 9 June 2016

बिन मौसम बरसात!

बिन मौसम बरसात आज तो,
कई पाप करवाएगी।      
पुनः आज उसकी यादों में,
सराबोर कर जाएगी॥

मैं देख घटाएँ काली-काली,
उसका चेहरा मँढ़ता हूँ।
उसकी बातें पुनः याद कर,
स्वयं के मन से लड़ता हूँ॥




बिजली की लकीरें मेघों में,
जुल्फ़ों को उकेरा करती हैं।
उन जुल्फ़ों की सुन्दरता से,
रूप-परी भी डरती है॥

गरज़ घनों की रह-रह कर के,
मन विचलित कर जाती है।
धरा से मिलती हर इक बूँद भी,
उर में रोष भर जाती है॥




हवा ये ठंडी मुझको छूकर,
स्पर्श उसका दे जाती है।
पत्तों पर वर्षा की ध्वनि भी,
दिल मेरा ले जाती है॥

‘भोर’ पयोधर झर-झर बरसें,
मन का शोर दबाने को।
पर उसकी यादें रह-रह कर,
आतीं मुझे सताने को॥




©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’

wallpapers- Wall 1,Wall 2

No comments:

Post a Comment

Write your name at the end of the comment, so that I can identify who it is. As of now it's really hard for me to identify some people.
Sorry for the inconvenience..!!
Thanks..!!