कुछ साथ रहे, कुछ छोड़ गए,
कुछ गहरा नाता जोड़ गए।
कुछ साथ निभाने खड़े रहे,
कुछ सारे बंधन तोड़ गए॥
कुछ गहरी सीख सिखा गए,
कुछ हार के हमको जिता गए।
कुछ भूले-भटके यादों में,
कुछ अमिट नाम भी लिखा गए॥
कुछ चिंता करते रहते हैं,
कुछ आगे बढ़ो ही कहते हैं।
कुछ दूर से देखा करते हैं,
कुछ पास खड़े सब सहते हैं॥
कुछ मुँह पर ताना कसते हैं,
कुछ पीठ पीछे से हँसते हैं।
कुछ नज़र चुराते मिलने को,
कुछ पलकों में ही बसते हैं॥
कुछ सब-कुछ समझा करते हैं,
कुछ कहने से ही डरते हैं।
कुछ साथ निभाते हैं ग़म में, औ
कुछ सारे दुःख हरते हैं॥
कुछ उजियारा कर जाते हैं,
कुछ खुद में ही जल जाते हैं।
कुछ अंतिम पग तक साथ चलें,
कुछ समय से निकल जाते हैं॥
कुछ ‘भोर’ में साथ निभाते हैं,
कुछ निशा समय ही आते हैं।
कुछ जाते-जाते रुला गए,
कुछ मन विचलित कर जाते हैं॥
©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’
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Sorry for the inconvenience..!!
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