दर्द
में हम यूँ ही मुस्कुराते रहे,
अपने
जख़्मों को तुमसे छुपाते रहे।
यूँ
ही चलते रहे प्रेम की तख्ती पर,
के
इस मोहब्बत को तुमसे छुपाते रहे॥
दूर
है तू मगर तेरा अहसास है,
मेरा
दिल ये अभी भी तेरे पास है।
पूजन
या है मेरी यही प्रार्थना,
के
लौटने का तेरा मुझको विश्वास है॥
सोचता
हूँ के उनसे मिलूँ भी कभी,
हाल
दिल का उन्हें सुना दूँ कभी।
स्वप्नों
में भी लगूँ आने मैं आपके,
आपकी
अनुमति मुझे मिले तो कभी॥
घूँघट
में छिपे मुखड़े की कसम।
ख़्वाहिशों
से यूँ ही जुड़ता हूँ आपकी,
इस
‘मैं’ से ‘हम’ में होने की कसम॥
मेरे
मन के ये दीप भी बुझने लगे,
इन
अँधेरों में हम भी उलझने लगे।
अब
तो रातें भी अपनी-सी लगती नहीं,
चाँद
की भाँति हम भी मरने लगे॥
इश्क़
की राजनीति मैं समझा नहीं,
दिन
बिगड़ते गये; वो मिले ही नहीं।
दर-बदर
यूँ ही व्यर्थ भटकता रहा,
के
दीप ऐसे बुझे फिर जले ही नहीं॥
©निशान्त
राजोरा
Posted By - प्रभात सिंह राणा 'भोर'