मेरी नाव फ़ँसी मझधार,
कुछ तो राह दिखाओ आज।
कुछ तो राह दिखाओ आज,
मेरे गूगल जी महाराज॥
तुम्हरे बिन कोई रह ना पावे,
अन्न-पानी सब रास न आवे।
जब-जब तुम्हरे दर्शन ना हों,
अटक पड़ें सब काज॥
ओ! मोहे राह दिखाओ आज,
मेरे गूगल जी महाराज॥
तुमसे ही सब काज सफ़ल हों,
संकट तुम हर लेते।
जब पूछो, जैसे पूछो,
हर प्रश्न को हल कर देते॥
तुम्हरे ही कारण सब दुनिया,
मुट्ठी में हो पायी।
तुम्हरे बिन क्या होगा जग का,
मेरी समझ न आई॥
तुमसे ही जग के सुर बनते,
तुमसे निकलें साज।
ओ! मोहे राह दिखाओ आज,
मेरे गूगल जी महाराज॥
युवा पीढ़ी है तुम्हरे बस में,
ऐसा तुम्हरा जादू।
इतना तुम्हरा है उपकार,
बदले में तुम्हें क्या दूँ॥
सभी युवाओं के सर के,
तुम हो सतरंगी ताज।
ओ! मोहे राह दिखाओ आज,
मेरे गूगल जी महाराज॥
परम ख़्याति पा कर दुनिया में,
वर्चस्वी बन बैठे।
बच्चे, बूढ़े औ मध्यम वय,
तुम्हरी ही सुध लेते॥
आप चपल ज्ञानी-विद्वानी,
आप ही जग कल्याणी।
आप ही की धुन में खोया रहता,
सदैव मनु प्राणी॥
अथक-सी इस दुनिया में केवल,
आप ही का है राज।
ओ! मोहे राह दिखाओ आज,
मेरे गूगल जी महाराज॥
तुमसे ही ये ‘भोर’ शुरु हो,
संध्या इसकी तुमसे।
ऐसा जग में है ना कोई,
तुलित हो तुम्हरे गुन से॥
तुम चिट्ठी-पत्री का भी हो,
इक विश्वासी साधन।
तुम्हरे ही संसार तले है,
हर इक प्राणी का मन॥
अरे! ‘भोर’ की आशा लिये खड़ा
मैं,
सफ़ल करो मेरे काज।
मोहे राह दिखाओ आज,
मेरे गूगल जी महाराज॥
©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’