ख़ुदा की हर इबादत में तू है,
हाँ, मेरी आदत में तू है।
चैन में तू, राहत में तू है,
हाँ, मेरी चाहत में तू है॥
काम में, आराम में तू,
मधुर-भीनी शाम में तू।
खुशियों की उम्मीद तुझसे,
कर्म के अंजाम में तू॥
तृप्ति की तलाश में तू,
शान्ति की आश में तू।
‘भोर’ की शुरुआत तुझसे,
प्यार के एहसास में तू॥
हर दिन में तू, हर रात में तू,
अनकही हर बात में तू।
‘भोर’ में किरणों की भाँति,
बूँद-सी बरसात में तू॥
सत्कर्म में, गुनाह में तू,
ख़्वाहिशों की राह में तू।
बिन तेरे चंचल रहे मन,
चैन की पनाह में तू॥
रब की हर इनायत में तू है,
इश्क़ की रिवायत में तू है।
भूल में, आदत में तू है,
हाँ मेरी चाहत में तू है॥
©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’