बिन मौसम ये मानसून क्यों आया ?
जो संग अपने इतनी तबाही है लाया।
इस बार पहाड़ इतना क्यों रोया,
कि उसने सबका सुख-चैन है खोया॥
क्यों नदियों ने इतना उफ़ान लिया ?
कि जो आया सामने उसका विनाश किया।
क्यों नदियों ने निगले गाँव के गाँव,
तो भू-स्खलन ने क्यों तोड़े उत्तराखण्ड के पाँव॥
दैवीय आपदा से खुद देव भी न बच पाए,
केदारनाथ, बद्रीनाथ धाम भी यहाँ पानी में समाए।
शवों की क्यों नहीं हो पायी ठीक-ठीक गिनती,
क्यों प्रशासन नहीं सुन रहा पीड़ितों की विनती॥
सब पीड़ितों की आँख में देखा जा,
सकता है ये खौफ़नाक मंज़र्।
ये आपदा हमने बुलाई, हमने ही घोंपा है
पहाड़ों की पीठ में खंज़र॥
हर तरफ़ मची ये करुण चीख-पुकार,
हवाई दौरा कर क्या मजाक उड़ा रही है सरकार॥
क्यों लग रहे हैं प्रबंधन के गलत अनुमान,
दूर तलक फ़ैले हैं इस तबाही के निशान।
क्या हैं, हमारे पास इन सवालों के जवाब ?
पहाड़ों को बना के भिखारी, प्रबंधन क्यों बना बैठा है नवाब
?
©शुभांकर ‘शुभ’
उपरोक्त कविता मेरे एक अज़ीज़ मित्र के द्वारा लिखी गयी है।
आपकी कविता सभी के सम्मुख रखते हुए अत्यंत खुशी महसूस कर रहा हूँ। आपके व्यक्तित्व
को मैं ज्यादा नहीं जानता परंतु इतना तो आपकी कविता लेखन से स्पष्ट है कि आप चरित्र
के अत्यंत सरल हैं। आप मेरे उन मित्रों की श्रेणी में शामिल हैं जिनसे मैं कभी मिला
नहीं परंतु मिलने को आतुर हूँ।
“उपरोक्त कविता में लेखक के स्वयं के विचार हैं।“
धन्यवाद!
-प्रभात सिंह राणा ‘भोर’
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Sorry for the inconvenience..!!
Thanks..!!