Sunday, 22 November 2015

सफ़र…

अन्तहीन-सी राहों में,
चलता रहे कुछ यूँ सफ़र।
न किसी की फ़िक्र मन में,
न किसी की हो ख़बर॥

न रुके, चलता रहे,
न कभी मन्जिल मिले।
दर्मियाँ बस बातें हों,
मन चले हो बेसबर॥





कभी सरपट, कभी धीमे,
कभी गोल-सा चक्कर लगा के।
सफ़र जीवन को दर्शाये,
मस्ती हो कुछ इस कदर॥




कुछ गीत हों, संगीत हों,
कुछ कहकहे नये पुराने।
कुछ अनकही ख़ामोशियाँ,
जो छोड़ दें दिल पे असर॥

कुछ ‘भोर’ की बातें हों तुमसे,
कुछ तुम्हारी भी सही।
कुछ दुनियाभर का पागलपन,
मिले न जो दर-बदर॥



©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’


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