Sunday 22 March 2015

तुम थी....!

आँखों की राहत तुम थी,
हाँ, मेरी पहली चाहत तुम थी,
तुम थी चेतना में मेरी,
कल्पनाओं की आकृति तुम थी।

तुम अर्थ थी, स्पर्श थी,
तुम वेदना-संवेदना,
तुम भाव थी, अभिव्यक्ति थी,
तुम प्रेम की थी प्रेरणा।











मैं मार्ग था तुम थी दिशा,
मैं मूर्त था, तुम अर्चना,
मैं शब्द था, तुम वाणी थी,
मैं साध्य था तुम साधना।

तुम भाग्य थी, मेरा कर्म भी,
तुम गीत थी संगीत भी,
तुम नेत्र थी, तुम अश्रु भी,
तुम लक्ष्य थी, तुम जीत भी।











जग दूर था, तुम पास थी,
तम घोर था, तुम आस थी,
मैं चित्र था, तुम थी कला,
मैं बिम्ब, तुम आभास थी।

मेरी हार में मेरा बल बनी तुम,
तुम मुस्कान थी, तुम थी खुशी,
हृदय में उतरी आहट तुम थी,
हाँ......, मेरी पहली चाहत तुम थी।


©विवेक ‘उत्कंठ’


यह कविता आपके सम्मुख रखते हुए मुझे बेहद खुशी महसूस हो रही है।
उम्मीद है कि बेहद उम्दा लेखक और व्यक्तित्व द्वारा कृत यह कृति आपको पसन्द आयी होगी।

धन्यवाद...!

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