Saturday 29 December 2018

कुछ लोग..!


कुछ लोगों ने साथ दिया है,
कई ने दिल भी तोड़ा है।
कुछ लोग हमेशा साथ रहे,
और कुछ ने तन्हा छोड़ा है॥

यह वर्ष भी अंतिम चरण में है,
न जाने अगला कैसा हो।
आशा है, हिम्मत न टूटे,
चाहे मंज़र जैसा हो॥

 
इस बार कई ने परखा है,
कुछ लोगों ने अपनाया भी।
कुछ लोग मिले थे ऐसे भी,
कि गले लगा ठुकराया भी॥

कुछ ने दिल में बात रखी,
पर कुछ ने खूब सुनाया भी।
मुट्ठी भर ने धोखा देकर,
अच्छा सबक सिखाया भी॥

कुछ लोगों ने हाथ बढ़ाए,
कुछ ने मुझे बनाया भी।
फिर तोड़-तोड़ कर अलग किया,
और कुछ ने हाथ बँटाया भी॥


अब नया वर्ष भी सम्मुख है,
कुछ नई चुनौती लेकर।
नए रास्ते, नई जगह;
और नई कसौटी लेकर॥

कुछ लोग मिलेंगे ‘भोर’ की भाँति,
नए वर्ष के साथ।
हर लेंगे सब अंधकार,
बस थामे रखना हाथ॥



©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’


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Monday 24 December 2018

Moon - Ⅱ


First part of this was posted a year ago. If you are interested to give it a try you can click here. (Moon - Ⅰ)


As I’ve told you before,
We’re not that different; you and me.
Running alone through the night,
Getting stronger with every fight.

You shine, you shine to show her,
Just who you are.
Sure the distances are there, but
For her, you’re not so far.
At night you try your best,
You shine even if it’s not your light.


You’ve got to agree!
We’re not that different; you and me.
Running alone through the night,
Getting stronger with every fight.

At night, slowly you rise,
You rise, just to say, hi!
Then comes the morning,
And so the goodbye!
You can’t tell her the truth,
So you chose to see her from height.


I guess, you’re getting my point!
We’re not that different; you and me.
Running alone through the night,
Getting stronger with every fight.

I think, it’s a nice thing you have,
Whatever it is with her.
It gives you the motive to stay high,
And a purpose to be there, forever!
You’ve got the time till morning,
To tell her, you have full night.


So, now you’re agreeing with me right?
We’re not that different; you and me.
Running alone through the night,
Getting stronger with every fight.



©Prabhat Singh Rana ‘Bhor’

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Sunday 26 August 2018

राखी

आज डाकिया काफ़ी दिन के,
बाद नज़र है आया।
मेरे नाम को लिखा हुआ इक,
साथ लिफ़ाफ़ा लाया॥

देख डाकिया आज से पहले,
खुशी कहाँ पायी थी।
उस एक लिफ़ाफ़े में बहनों की,
राखी जो आयी थी॥


बड़ा सजा के पत्र एक,
भेजा था उसके अंदर।
हृदय खोलकर लुटा दिया था,
ममता भरा समंदर॥

दोनों ने लिखा था उसमें,
बारी-बारी आकर।
एक बात ही लिख रखी थी,
बार-बार दुहरा कर॥

ये कि भाई इस राखी न,
हाथ खाली रह जाए।
तुझे बड़ा पसंद है न,
पर मीठा कौन खिलाए॥

हर साल सताता था कि,
जा नहीं देता कुछ बदले में।
इस बार बिना तेरे, राखी में
मुझको कौन सताए॥

फ़िर छोटी वाली ने भी,
अपने मन की लिख डाली।
इस बार नहीं सजाउँगी मैं,
पूजा वाली थाली॥

तेरे बिना न दीदी मुझको,
बिना बात धमकाए।
न ही मम्मी गुस्सा होकर,
कान खींच समझाए॥

सोचा था तू जाएगा तो,
सारा लाड़ मिलेगा।
पर तेरे बिन दुनिया भर का,
लाड़ मुझे न भाए॥


इतना पढ़ कर आँसू,
मेरी आँखों में आ छलके।
यादों में बह चले थे सारे,
क़िस्से बीते कल के॥

दीदी की चोटी को मैं जो,
खींच के भागा करता।
फ़िर मम्मी की डाँट पड़ेगी,
सोच के थोड़ा डरता॥

छोटी वाली के हाथों से,
टॉफी छीना करता।
फ़िर रोती तो अपने हिस्से की,
उसको दे पड़ता॥

भाई-बहन के इतने क़िस्से,
कैसे तुम्हें बताऊँ।
कैसे अपनी ‘उस’ दुनिया की,
सैर तुम्हें करवाऊँ॥


‘भोर’ की ख़ातिर दोनों अपना,
सब कुछ भूले जाती हैं।
पर रह-रह कर राखी में ये,
आँखें नम हो जाती हैं॥




©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’


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