Monday 18 July 2016

पथ-प्रदर्शक

स्याह मार्ग में दिशा दिखाते,
राह बताते हैं, पथ-प्रदर्शक।
अन्तिम पग तक साथ निभाते,
कहीं न जाते हैं, पथ-प्रदर्शक॥

नयी राह में, नये रूप में,
कार्य तो वही करते हैं।
दिशा दिखाकर सबको, शायद
खुद खोने से डरते हैं॥



भ्रमित पथिक को अँधियारे में,
आशा भी तो देते हैं।
जैसे कहते चले-चलो तुम,
साथ में हम हो लेते हैं॥

नीरव तम में राहगीर के,
साथ-साथ चल पड़ते हैं।
गिरे हुए को आशा देकर,
पुनः उठाते हैं, पथ-प्रदर्शक॥


घोर अँधेरे, खड़े अकेले,
राह प्रकाशित करते हैं।
राही जाए जहाँ-जहाँ,
हर जगह उपस्थित रहते हैं॥

‘भोर’ काल से दिन संध्या तक,
एक जगह जड़ रहते हैं।
अँधियारे में बोलें, उजियारे में
कुछ न कहते हैं॥

हर मानव को भेद बिना,
सीने से लगाते हैं, पथ-प्रदर्शक।
अन्तिम पग तक साथ निभाते,
कहीं न जाते हैं, पथ-प्रदर्शक॥




©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’



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